Indradhanush
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जिस आत्मा में है परमात्मा का निवास,
सदाचारी है वो पुष्पों की तरह|
निर्मल है वो बहते झरनों की तरह,
विहग सा आकाश की ऊँचाईयों को छुए|
सागर सा है गहरा ज्ञान उसका,
सूर्य सा तेज़ है उसके मुखमंडल पर|
एक दिन मिल जायेगी वो आत्मा परमात्मा से,
निःस्वार्थ प्रेम में समर्पित है जिसका जीवन|
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