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अरमानों के पंख!

Indradhanush
Indradhanush
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मेरे अरमानों के भी पंख थे,
मेरे अपनों ने ही काट दिए वो पंख मेरे,
खाक हुए अरमान सारे,
अब तो सिर्फ घायल मन है,
हमने भी कभी देखे थे सतरंगी सपने,
हालात की मार से उड़ गए रंग मेरे सपनों के,
अब तो सिर्फ बेरंग सी ज़िन्दगी है,
नहीं हारेंगे अपनों के दिए ज़ख्म से,
नहीं हारेंगे हालत की मार से,
फिर से अपने अरमानों को पंख देंगे,
फिर से अपने सपनों में रंग भरेंगे,
बदल जायेंगे एक दिन ये हालात मेरे,
अपनी तकदीर हम खुद लिखेंगे |

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