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प्रण

Indradhanush
Indradhanush
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रचना जिस स्कूल में पढ़ाती थी उसी स्कूल में उसके दोनों बेटे भी पढ़ते थे | रोज की तरह स्कूल से लौटने के बाद उसने बच्चों के कपड़े बदलवाए और सबके लिए खाना लगाया तभी बाहर से आवाज आई | उसकी सास ने कहा देखो दरवाजे पर कौन है? बाहर जाकर देखा तो एक औरत जो वेश-भूषा से बंजारन लग रही थी अपने दो वर्षीय बेटी के साथ भीख मांगने आई थी | अन्दर जाकर वो ५ रुपया ले आई और उसे दे दिया फिर भी वो नहीं गई और बोली कि कोई पुराना शॉल और स्वेटर दे दे | उसने अन्दर जाकर अपनी सास से पूछा- मम्मी जी एक बंजारन शॉल स्वेटर मांग रही है, अपने पास इतने सारे शॉल स्वेटर बॉक्स में यूँ ही पड़े हैं क्या मैं उसे दे दूं? मम्मी जी, बोली- कोई जरुरत नहीं है जब मैं गाँव जाऊँगी तो इन स्वेटर कपड़ों को देकर बदले में घर के कई काम करवा लूँगी, इसको देकर क्या फायदा | रचना ने ना चाहते हुए भी जाकर बंजारन से झूठ बोला कि उसके पास कोई शॉल स्वेटर नहीं है, वो वहां से चली गई | उसे दुःख हो रहा था पर मम्मी जी की बात काटकर स्वेटर देने की हिम्मत नहीं जुटा पाई क्योंकि उनकी बात के खिलाफ कुछ भी करने का मतलब था डांट सुनना और राइ का पहाड़ बनाना |

रचना का घर रेलवे नर्सरी के पास था | उसे पार करने के बाद चौराहे पर वह रोज अपने बेटों के साथ स्कूल बस से स्कूल जाती थी | आज भी वह बेटों के साथ नर्सरी से गुजर रही थी, कोहरा काफी घना था | पेड़ों से शीत की बूँदें टप-टप की आवाज के साथ टपक रही थी, धरती यूँ ओस की बूंदों से गीली थी जैसे बारिश हुई हो | कई कपड़ों के तम्बू अक्सर नर्सरी में लगे रहते थे इनमे बंजारे इस समय डेरा डाले हुए थे | कुछ दूर जाने पर उसे किसी के जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई दी वो आवाज की दिशा में आगे बढ़ी, उसके कदम अचानक ठिठक गए वो ये देखकर चौंक गई की ये वही औरत थी जो कल स्वेटर मांग रही थी | पूछने पर उसे बताया कि उसकी बच्ची की तबियत ख़राब है वो रात से बहुत उल्टियाँ कर रही है | रचना ने जब बच्ची को छूकर देखा तो वो बिलकुल बर्फ की तरह ठंडी थी, उसने इतनी ठण्ड में बच्ची को सिर्फ कुछ कपड़ों में लपेट रखा था | उसे दिलासा देते हुए अपना शॉल बच्ची को ओढ़ाने के लिए दे दिया और बोली घबराओ मत यहीं पास में चौराहे पर डॉक्टर का क्लिनिक है इसे वहां ले चलो तब उसने पैसे ना होने की मजबूरी बताई | रचना ने बोली कि वो पैसे देगी | गरीबी और मुसीबत में इंसान का स्वाभिमान मर जाता जिसे कल स्वेटर देने से इंकार कर दिया फिर भी वो तुरंत ही उसकी मदद लेने को तैयार हो गई | जब सभी क्लिनिक पर पहुंचे तो वहां कोई नहीं था |

रचना की स्कूल बस भी छूट गई, बच्चे कहने लगे- मम्मी इसे पैसे दे दो डॉक्टर आयेंगे तो दिखा लेगी चलो हमलोग ऑटो रिक्शा से स्कूल चलते हैं तब रचना ने समझाया कि नहीं डॉक्टर देख लें फिर चलेंगे ऐसी स्तिथि में छोड़कर जाना ठीक नहीं होगा | दस बज गए तब तक डॉक्टर नहीं आये बच्ची की हालत बिगड़ती जा रही थी वो मन ही मन ये सोचने लगी कि कहीं कोई अनहोनी हो जाने पर इल्जाम उसके ऊपर न आ जाये और वो अपने दो बच्चों के साथ किसी मुसीबत में न फंस जाए | विपरीत परिस्थिति में इन्सान के मन पर गलत विचार हावी होने लगते हैं, स्वेटर न देने की वजह से वह अपराध-बोध से घिर गई अगर कोई अनहोनी हो गई तो उसे हमेशा एक अपराध-बोध घेरे रहेगी | अनहोनी की बात को उसने अपने मन से झटककर ईश्वर से प्रार्थना की कि बच्ची ठीक हो जाए | कुछ देर में ही डॉक्टर आ गए बच्ची का इलाज शुरू हो गया उन्होंने जो दवाएं लाने को कही वो पास के मेडिकल स्टोर से लाकर दे दिया | बच्ची की हालत में सुधार होने लगा | अब रचना को स्कूल का ध्यान आया जब उसने प्रिंसिपल को फ़ोन करके ना आने का कारण बताया तो उन्होंने ये कहते हुए डांट दिया कि छुट्टी का बहाना अच्छा है |

और पैसों की जरुरत पड़ गई तो उसने स्टेट बैंक से अपनी सैलरी निकाल लाने की सोची, अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर उतनी दूर जाने में परेशानी होती पर वहां छोड़ भी नहीं सकती थी | फिर वो बंजारन को वहीँ रुकने को कहकर बच्चों को लेकर पैसे लाने चली गई | बैंक में भीड़ कम थी सो पैसे जल्दी ही मिल गए | लौटते वक्त रास्ते में बाज़ार से उसने शॉल स्वेटर और एक कम्बल बंजारन को देने के लिए खरीदा | बार-बार ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी की बच्ची ठीक हो जाए, ईश्वर ने उसकी सुन ली जब वह क्लिनिक पर पंहुची तो उस बंजारन ने रचना के पैर पकड़ लिए कहने लगी आपने ही मेरी बच्ची को जीवनदान दिया है अब तक वह अपनी बच्ची को खो देने की दहशत में चुप सी थी | बच्ची की हालत काफी सुधर गई थी |

रचना ने डॉक्टर को जब फीस दिया तो वो बोले-  मैडम जी आपने एक अनजान की बच्ची को बचाया अपना स्कूल छोड़कर समय दिया फिर मैं कैसे फीस ले सकता हूँ | रचना को डॉक्टर अच्छी तरह पहचानते थे क्योंकि वो अपने बच्चों का इलाज भी उन्ही से कराती थी |

सब लोग अब घर की तरफ लौट चले, रास्ते में जब रचना ने बंजारन को कम्बल, स्वेटर और शॉल दिया तो वो अपनी भाषा में भरे गले से न जाने क्या-क्या कहती रही, रचना उसकी पूरी बात तो नहीं समझ पा रही थी पर इतना जरूर समझ रही थी कि वो ढेरों दुआएं दे रही थी | क्या तुमलोगों का गुजारा भीख मांगकर ही चलता है? रचना के पूछने पर उसने जवाब दिया- अभी ठण्ड में काम-धंधा नहीं चल रहा है, हमलोग गुलदस्ते के लिए फूल बनाकर बेचते हैं और बेंत कि टोकरियाँ भी | जो पैसे मिलते हैं उनसे रोज का राशन लाते हैं | रचना ने उसे कुछ पैसे उसे दिए और बच्ची को दवाएं देने ठंढ से बचाने को कहकर अपने घर की तरफ मुड़ गई | उसने सोचा कि अपने बच्चों को इस घटना के बारे में घर में किसी को ना बताने के लिए समझा दे पर फिर उसे ऐसा करना उचित नहीं लगा |

अगले दिन शाम को जब वह चाय बना रही थी, बच्चे बाहर दादा-दादी के साथ बातें कर रहे थे, अचानक मम्मी जी ने रचना को खरी-खोटी सुनाना शुरू कर दिया वो गालियाँ भी दे रहीं थीं और बार-बार मनहूस कहकर विभूषित कर रहीं थीं | जब उसने उनकी बातों पर गौर किया तो पता चला कि मेरे छोटे बेटे ने कल की पूरी घटना कह सुनाई थी इसलिए उनका पारा सांतवे आसमान पर था वो कह रहीं थी कि अपनी मनमानी करती है, दूसरे के लिए अपने बच्चों को ठंढ में घुमाती रही, अपने बच्चों की परवाह नहीं है उन्हें कुछ हो जाता इसकी चिंता ही नहीं | इतने पैसे ऐरे-गैरे के लिए फूंक आई | सुनकर रचना को गुस्सा आ गया और बोली कि- मैंने कुछ भी गलत नहीं किया, अगर कल ही उसे स्वेटर दे दिया होता तो ये नौबत ही नहीं आती घर में इतने कपडे स्वेटर इकट्ठे करके रखने से क्या ये अच्छा नहीं होता कि गरीबों के काम आ जाये | रचना के इतना कहते ही वो और बिफर पड़ीं और गुस्से में बोलती ही रहीं तभी रचना के पति ऑफिस से आ गए और पूछा- बाहर तक आवाज जा रही है ऐसी क्या बात हो गई? उन्होंने पूरी बात अपने बेटे को कह सुनाई | रचना के पति बहुत ही समझदार और सुलझे हुए विचारों के व्यक्ति थे उन्होंने अपनी माँ को समझाया कि सही बात में अगर साथ नहीं दे सकती तो उसके लिए उसे कोसिये भी मत |

रचना अपने कमरे में आकर मन-ही-मन पछता रही थी कि काश! मैंने कोई जवाब ना दिया होता पर मनहूस शब्द उसे इस तरह चुभ जाती थी कि वो अपना आपा खो बैठती थी | उसे अपने पापा की कही बात याद आई वो अक्सर कहा करते थे कि कोई यदि तुम पर गुस्सा करे, भला-बुरा कहे तो ऐसे लोगों पर दया करनी चाहिए, तरस खाना चाहिए और ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि उन्हें सद्बुद्धि दें | रचना के पति ने आकर समझाया कि तुम्हें मम्मी को जवाब नहीं देना चाहिए था, घर आकर तुम्हें खुद ही सारी बातें बता देनी चाहिए थी | रचना ने सहमती में सर हिला दिया | उसने प्रण किया कि वो कभी भी बड़ों को जवाब नहीं देगी पर उसे जो उचित और सही लगेगा वो वही करेगी वो जरुरतमंदों की मदद जरूर करेगी | बड़ो की हर बात मानेगी पर वो नहीं जो अनुचित हो | अगर किसी भले काम को करके इतने आत्मसंतोष का सुख मिलता है तो वो उसके लिए अपनों की कुछ कड़वी बातों का विष ख़ुशी से पी जाएगी |

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