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वो समझ न सके

Indradhanush
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सारे अफसाने लबों तक आते-आते रुक गए,
वो दिल के ज़ज्बात समझ न सके|

पता नहीं उनकी बेरुखी के पीछे है क्या बेबसी,
कम-से-कम बेरुखी का तो हक़दार बनाया मुझे,
क्यूँ सहते रहे उनकी बेरुखी भी,
वो समझ न सके|

सोचा हमेशा के लिए उनसे रूठ जाएँ रूठकर उन्हें जी भर सताएँ,
पर कोई ठेस उनको लगे तो दर्द मुझे भी होता है,
क्यूँ उनकी तकलीफ से आये मेरी आँखों में नमी,
वो समझ न सके|

उनके दिए ज़ख्मों को भी हँसकर अपने सीने में पालेंगे,
बस वो साथ छोड़ने की बात ना करें,
क्यूँ उनके जुल्मों-सितम भी गवारा हमें,
वो समझ न सके|

उन्हें छूकर आई हवाओं को भी कोरे कागज़ सा पढ़ते रहे,
उनके गम में मातम और ख़ुशी में जश्न मानते रहे,
क्यूँ उनकी ख़ुशी ही मेरी ख़ुशी,
वो समझ न सके|

सारे अफसाने लबों तक आते-आते रुक गए,
वो दिल के ज़ज्बात समझ न सके|

– सुधा जयसवाल

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