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मेरी शिक्षा-दीक्षा क्रिश्चन-मिशन स्कूल से हुई थी, जहाँ किताबी ज्ञान के साथ-साथ धर्म, अनुशासन और नैतिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता था | मेरे पापा ने जब उस स्कूल में मेरा नामांकन करवाया था तब मुझसे कहा था कि- “यहाँ से शिक्षा पाकर तुम्हारी जिंदगी स्वर्ग बन जाएगी |” तब इस बात का सही मतलब मेरी समझ में नहीं आया था क्योंकि मेरी उम्र उस समय मात्र ११ वर्ष की ही थी | मेरे पापा की जॉब ऐसी थी कि २ या ३ साल पे स्थानांतरण हो जाया करता था इसलिए पापा ने मुझे हॉस्टल में डाल दिया ताकि मेरी शिक्षा वहीँ से पूरी हो सके | उस स्कूल में महीने में दो बार प्रार्थना-सभा आयोजित की जाती थी, स्कूल का अपना बड़ा सा चर्च था, वहीँ सारे बच्चे और सिस्टर्स ( नन जो हमें शिक्षा देती थी वो समाज सेवा के लिए प्रतिबद्ध होती थीं और शादी नहीं करती थीं | ) एकत्रित होते थे | वहां इतनी शांति होती थी कि अगर एक पिन भी गिर जाये तो आवाज सुनाई दे | पहले धर्म और ज्ञान की बातें बताई जाती थी फिर भजन गाया जाता था | हमारा म्यूजिकल ग्रुप था जिसमें मैं भी शामिल थी | कौन सा ऐसा वाद्य-यन्त्र था जो मेरे स्कूल में नहीं था | इतने सुन्दर-सुन्दर गीत गाये जाते थे कि मन हर्षित और वातावरण मन को मुग्ध कर देने वाला हो जाता था | सभा के समापन के बाद सबको नैतिक शिक्षा की एक-एक किताब दी जाती थी जिसमे धर्म और नैतिक मूल्यों की जानकारी कहानी के आधार पे लिखी होती थीं | तब तो बहुत ज्यादा समझ नहीं आता था पर अब जब जीवन के कठोर सच्चाइयों से सामना हुआ है तब जो मुझे समझ आया है वो ये है कि सभी धर्मों में मूल ज्ञान की बातें एक ही होती हैं वो तो हम इन्सान ही धर्म के नाम पर इंसानियत को भी बांटते आये हैं |
रोज तो नहीं पर अक्सर रात को सोते वक़्त मैं अपने बच्चों को उन्हीं किताबों में से पढ़ी कहानियां सुनाती हूँ | एक कहानी जो मुझे याद आ रही है उसे मैं आप सबों से साझा कर रही हूँ | एक बार ईसा मसीह किसी शहर में एक यहूदी पादरी के घर अतिथि बनकर गए | शहर में यीशु के आने की खबर पाते ही एक स्त्री जिसे सभी ने पतिता घोषित किया हुआ था, पादरी के घर के बाहर पहुँच गई | वह अपने साथ सुगन्धित मरहम की एक शीशी भी लाई थी | यीशु को देखते ही वह उनके क़दमों में गिर गई और खूब रोने लगी, अपने आंसुओं से यीशु के पैरों को गीला करती रही | फिर उन्हें अपने बालों से पोंछती, उन्हें चूमती और फिर शीशी में लाया मरहम उनके पैरों में लगाती | यीशु जिस पादरी साइमन के घर अतिथि बनकर गए थे उन्हें यह बात बहुत नागवार गुजरी | उसने बुदबुदाते हुए कहा, यीशु कोई मसीहा नहीं हैं, अगर वे होते तो उन्हें यह जरुर पता होता कि यह स्त्री पवित्र नहीं बल्कि पतिता है | यीशु साइमन की बात सुनकर मुस्कुराये उन्होंने उसकी ओर मुड़कर कहा- मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ उसे सुनने के बाद तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर देना | साइमन ने हाँ में सर हिलाया | यीशु ने कहा- एक व्यक्ति के दो कर्जदार थे | एक ने उससे ५०० सिक्के उधार लिए थे दूसरे ने मात्र ५० सिक्के, लेकिन उस भले व्यक्ति को जब लगा दोनों ही कर्जदार उसका कर्ज नहीं उतार सकते तो उसने दोनों को माफ़ कर दिया | तुम बताओ कि कौन सा कर्जदार उस व्यक्ति को सबसे ज्यादा सम्मान देगा | साइमन ने कहा- मेरे ख्याल से वह जिसका कर्ज बड़ा था, क्योंकि उसको ज्यादा बड़ी माफ़ी मिली थी | फिर यीशु स्त्री की ओर मुड़े और साइमन की ओर देखते हुए कहा- मैं तुम्हारे घर पर अतिथि बनकर आया तुमने यह भी नहीं जाना कि मैं लम्बे सफ़र से आया हूँ मुझे अपने पैर धोने के लिए जल चाहिए होगा |
इस स्त्री ने अपने आंसुओं से मेरे पैर धोये, अपने बालों से उन्हें पोंछा, उन्हें चूमा और उन पर मरहम भी लगाया | इसने मुझे तुमसे कहीं अधिक प्रेम दिया तो बताओ यह स्त्री क्षमा और प्रेम की हकदार है या नहीं | मैंने इसके सारे पाप माफ़ कर दिए हैं, क्योंकि यह कहीं अधिक प्रेम करना जानती है |
जो जितना प्रेम करता है वो उतनी ही मात्रा में क्षमा प्राप्त करता है | प्रेम में भीगे शब्द आत्मा में एक राग जगा देते हैं, मन में एक अलौकिक ज्ञान का दीप जला देते हैं ठीक उसी तरह जैसे प्रेम के गीत दिल के तारों को छेड़ जाते हैं | प्रेम सबसे ज्यादा क्षमा से भरा होता है | प्रेम करने वाला और क्षमा मांगने वाला सबकी नजरों में ऊँचा उठ जाता है |
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