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मेरी प्यारी माँ,
तुम्हारी अजन्मी बेटी पूछना चाहती है कि
सोलह हफ्ते मुझे रखा कोख में,
पर मुझे क्यों नहीं जन्म दिया माँ?
जब पापा को तुमने मेरे आने की दी खबर,
तब तो तुम दोनों कितने खुश थे,
आते ही सोलहवां हफ्ता पापा ने,
तुम्हारा करवाया सोनोग्राफी,
लेटते ही तुम्हारे टेबल पर,
मेरा नन्हा सा दिल जोरों से धड़का,
डर था मुझे जिसका हुआ वही,
है एक बेटी तुम्हारी कोख में,
जानते ही तेरी ममता हो गई निर्दयी,
मुझे मार देने के फैसले में,
तुम भी सबके साथ हो गई,
एक औरत होकर भी मुझे,
अपनी कोख में ही मार दिया,
वो सोलह हफ्ते जब दुनियां को,
मैंने देखा था तेरी नजरों से,
मुझको भी दुनियाँ प्यारी लगी थी,
अपनी नजरों से भी दुनियाँ देखना चाहती थी,
ऊँगली तेरी थामकर चलना चाहती थी,
वो पल अब भी है याद मुझे,
जब तुम्हारी सांस मेरे फेफड़ों तक पंहुचती थी,
तेरे खाए खानों से हो रहा था मेरे अंगों का निर्माण,
इस नन्हें से दिल को हो गया था तुमसे बहुत प्यार,
तेरी कोख में बड़ी सुखद अनुभूति हुई थी,
जब तुम देखती थी खुद को आईने में तब,
ईश्वर से करती थी प्रार्थना मैं कि
मुझे मेरी माँ जैसी ही सुन्दरता देना,
अपने नन्हें कोमल अंगों को,
देख-देखकर मैं हर्षित होती और
सोंचती कि अपनी नन्हीं-नन्हीं उँगलियों से,
तेरे रेशमी बालों से खेलूंगी,
तेरे झुमके, चेन और चूड़ियों से खेलूंगी,
मेरे नन्हें पैर कितने सुन्दर आकार लेने लगे थे,
एक दिन इन्हीं नन्हें पैरों से दौड़कर,
आकर तेरी गोदी में, तेरे आँचल में छुप जाऊँगी,
मेरे ये सुन्दर सपने टूटे अचानक,
जब वो औजार तुम्हारी कोख में,
मुझको करने लगा लहूलुहान,
असहनीय पीड़ा से छटपटाती मैं,
तुम्हारी कोख की दीवारों से चिपककर,
करती रही बचने का असफल प्रयत्न,
तेरी कोख में उस हत्यारे औजार को,
आने की रजामंदी तुमने दी क्यूँ माँ?
आखिर क्यूँ तुम पड़ गई कमजोर माँ?
क्या अकेला ही पुरुष संसार चला पायेगा?
अगर तुम करती हौसला तो,
मुझे इस दुनियां में आने से,
कौन रोक सकता था,
नहीं सोंचा तुमने मेरे बारे में,
पर मैंने अपने बारे में सोंचा है कि
अगले जन्म में भी मैं बेटी ही बनकर जन्म लूँगी,
सारी कुरीतियों को जड़ से ख़त्म करुँगी,
तुम्हारी कोख से होकर आज़ाद मुझे स्वर्ग मिला,
पर कई सवाल कर रहे मुझको परेशान,
कौन तुम्हारी सेवा करेगा माँ?
कौन तुम्हारे बालों में तेल डालेगा?
कौन तुम्हारे पैर दबाएगा?
पापा और भैया की फ़रमाइशें,
पूरी करते-करते जब तुम थक जाओगी,
तब कौन तुम्हारी सुध लेगा माँ?
क्या ये सच नहीं कि
परिवार होता है पूरा जब जन्म लेती हैं बेटियाँ,
संस्कार और संस्कृति को पालती है बेटियाँ,
सुन्दरता और बुद्धिमत्ता का अनोखा संगम होती हैं बेटियाँ!!!!
– सुधा जयसवाल
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