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को पहचानना हर बच्चा अपनी माँ से ही सीखता है| माँ की संगति में महज आठ साल की उम्र में ही हर बच्चे के अन्दर एक लव मैप विकसित हो जाता है| उसी के आधार पर बच्चे की पसंद-नापसंद निर्भर करती है जैसे कि कुछ खास रंग, बातें, लोग, आवाज एवं वक्तित्व भी| हमारे जीवन में उसके प्यार के फूलों की खुशबू हर तरह के एहसासों से मन को हमेशा भिगोये रखती है|
पिता का प्यार बच्चा दुनिया में आने के बाद महसूस करता है पर माँ का प्यार वो दुनियां में आने से पहले से ही महसूस करने लगता है| ऐसा सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि पशु पक्षी और जानवरों के साथ भी है| इसका कारण बच्चे का माँ के गर्भ में नौ महीने का समय है, इस दौरान उससे माँ के खाने, खून, सांसों, हार्मोन, गुस्सा, भावनाओं और आनंद आदि सभी बातों का साझा होना है| पूरे समय का साथ दोनों को आत्मीयता और प्यार के अटूट डोर में बांध देती है| ये प्यार हर बच्चे के लिए ईश्वरीय उपहार है, वहीँ पिता के प्यार से बच्चे को प्यार की कीमत पता चलती है और सुरक्षा की भावना दोनों के प्यार से महसूस करता है| माँ से प्यार करने पर उसे ऐसा महसूस होता है जैसे वो खुद से प्यार करता हो| पाषण युग में माँओं की भूमिका दोहरी होती थी, वो घर की जिम्मेदारी सँभालने के साथ ही पुरुषों के साथ शिकार पर भी जाती थी तब वह अपने बच्चे को पीठ पर बांधे रहती थी| रानी लक्ष्मी बाई जैसी वीरांगना माँ को कौन भूल सकता है जिसने बेटे को पीठ पर बांधे अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे| आज की कामकाजी महिलाएं भी दोहरी जम्मेदारी निभाती हैं| एक माँ वक्त पड़ने पर बच्चे को अकेले ही पाल लेती है उन्हें सुसंस्कृत, शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाती हैं|
माँ और बच्चे के बीच भावनात्मक रिश्ते की मजबूती की एक वजह औक्सिटोसीन नामक हार्मोन होता है जो बच्चे के जन्म के बाद माँ के अन्दर पैदा होता है| इसी हार्मोन के कारण माँ के अन्दर बच्चे को चिपकाने और बांहों में लेने की इच्छा होती है| बच्चे को सच्चे प्यार की अनुभूति असल में माँ के प्यार से ही होती है इसलिए हर बच्चा प्यार का ककहरा अपनी माँ से ही सीखता है| अपने हर कार्य को वो सबसे पहले माँ को ही दिखाता है| अक्सर बेटियां अपनी माँ का ही प्रतिरूप होती हैं| उनमे स्नेहिल व्यवहार और संबल के सही संतुलन का गुण माँ से ही मिलता है| अक्सर एक चंचल, अल्हड लड़की माँ बनते ही सुन्दर, सहज और कोमल स्वभाव वाली बन जाती है| बेटियां शुरू से ही बच्चों से बहुत प्यार करती हैं पर बेटे अक्सर जब वो खुद पिता बनते हैं तब बच्चों से ज्यादा प्यार करते हैं| हम सबके भीतर ईश्वरीय भक्ति सा माँ का प्यार हर पल महसूस होने वाला प्यार है, संसार के सभी प्यार और प्यारे रिश्ते की नींव माँ का प्यार ही है|
– सुधा जयसवाल
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