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नारियों जागो! अपनी शक्ति को पहचानो!

Indradhanush
Indradhanush
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दहेज़ हत्या, कन्या-भ्रूण हत्या, एसिड अटैक, रेप और फैशन का रूप लेता गैंग रेप हमारे समाज में इन अपराधिक प्रवृत्तियों को अपराधी अंजाम देकर गायब हो जाता है और निर्दोष लड़की पूरी जिन्दगी मर-मर कर जीने को मजबूर हो जाती है। जीना क्या अब तो शरीर और आत्मा को ऐसी चोटें दी जाती है कि मर ही जाती है और मरने के बाद भी उसे इंसाफ नहीं मिलता।
कैसे मिले रक्षक ही जब भक्षक बने बैठे हैं। लोगों में अब न तो समाज का डर है और न ही कानून का।
पहले महिलाओं का शोषण होता था, उन्हें अशिक्षित रखकर अबला बनाया था मगर अब शिक्षित और आत्मनिर्भर महिलाएं भी तो सुरक्षित नहीं। ऐसी विकृत मानसिकता की ओर हमारा समाज बड़ी तेजी से बढ़ता जा रहा है। घर से बाहर की बात तो दूर घर में भी बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं। कई घरों में अबोध बच्चियां तक यौन-शोषण का शिकार हैं। हमारे देश में स्त्री को देवी मान कर पूजा की जाती है और उसी देश की स्त्री का अस्तित्व ही खतरे में है। हमारे देश का ये कैसा सभ्य और सुसंस्कृत समाज है जो शिक्षित होकर संस्कारों को ही निगल गया। आज भी बहुत से घरों में स्त्रियों पर अत्याचार होते हैं। शुरू से उन्हें दबा कर रखा जाता है। छोटी उम्र से ही उन्हें कदम-कदम पर नसीहतें दी जाती हैं और उसी घर में बेटों को कोई रोक-टोक नहीं बल्कि पूरी आजादी दी जाती है आज भी ऐसा कहने वालों की कमी नहीं जो लड़को के लिए बड़े गर्व से कहते हैं कि घी का लड्डू टेढो भला। उन्हें कठोर अनुशासन में नहीं रखा जाता जबकि लड़कों को ही ज्यादा अनुशासित रखने की जरुरत है। सख्त जरुरत है समाज को अपनी सोंच बदलने की। बेटे और बेटी दोनों को स्कूली शिक्षा ही नहीं बल्कि हर बात के अच्छे और बुरे दोनों पहलू के बारे में शिक्षित करें। दोनों को अनुशासन में रखें। बेटों को कभी भी ये सीख न दें कि वह बेटा है तो जैसे चाहे जी सकता है, जब चाहे कहीं भी आ जा सकता है।
आज एक आत्मनिर्भर महिला की आत्मा और शरीर की ऐसी दुर्गति, सोंच कर वितृष्णा सी होती है। समाज का ऐसा घिनौना रूप, देखकर हर नारी को यूँ महसूस हो रहा है जैसे हम जीते जी नर्क में हों। दरिंदगी की सारी सीमायें पार की जा रही हैं और हमारा समाज और कानून मूक दर्शक बना बैठा है। पुरुष मानसिकता तो दोषी है ही खुद महिलाएं भी कम दोषी नहीं क्योंकि शिक्षित होने के बावजूद ज्यादातर महिलाएं खुद ही अपने को पुरुषों से कमतर आंकती हैं। अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठाती, अपने हक के लिए नहीं लड़तीं जबकि जुल्म करना और सहना दोनों ही हर हाल में गलत है। अब सहना बंद करो तभी तुम पर अत्याचार बंद होंगे। अरे! जगाओ अपने भीतर की शक्ति को, तुममें ही दुर्गा है, काली है, तुम ही जननी हो इस सृष्टि की और आज तुम्हारा ही अस्तित्व खतरे में है। तुम्हें अब लड़ना ही होगा, भूल जाओ उस दौर को जब इज्जत की खातिर ये समाज बेटियों को चुप रहना सिखाता था, अपमान का विष पी जाना सिखाता था। उसी का परिणाम सामने आ रहा है विकृत मानसिकता के रूप में जहाँ मासूम बच्चियों तक को वहशी दरिन्दे अपना शिकार बनाने से नहीं हिचकते। कोई नहीं है रक्षक अपनी रक्षा के लिए खुद तैयार रहो। एकजुट होकर विरोध करो।
अपनी बेटियों की हिम्मत और शक्ति बनो। उन्हें मानसिक और व्यवहारिक रूप से मजबूत बनायें। छोटी उम्र की बच्चियों को विशेष निगरानी में रखें उनके साथ ऐसा वर्ताव करें कि वो हर बात बताये।
बेटियों को हर तरह की शिक्षा के साथ ही जूडो, कराटे और ताईक्वान्डो आदि का भी प्रशिक्षण दिलवाएं। सरकार को चाहिए कि हर स्कूल, कॉलेज में इस प्रशिक्षण की व्यवस्था करे|
एक और महत्वपूर्ण बात जिनके साथ भी हादसा हो उनके साथ सामान्य व्यवहार किया जाये, उस लड़की या महिला की किसी बात की चर्चा इस तरह न की जाये कि उनके मन में हीन भावना आये बल्कि दोषी (कुकर्मी) को ही दोष दें। लोग एकजुट होकर अपराधी को सख्त सजा दिलवाएं ज्यादा अच्छा हो कि खुद ही सजा देकर पाप के बोझ को मिटा दें।
दूसरा जरुरी कदम ये कि बेटों को इतनी आजादी न दी जाये कि वह उदंड हो जाये और बेटियों को इतना दबा कर न रखा जाये कि वह मन से कमजोर हो और अपनी बात बताने से डरे, हालात का सामना करना सिखाएं।
पुरुष सत्तात्मक समाज जो ये दंभ भरता है कि आज भी महिला पुरुषों के अधीन है, अब इस मानसिकता को बदलना ही होगा। अपने परिवार से ही शुरुआत करें, अत्याचार, अन्याय का विरोध करें। एक परिवार बदलेगा तो पड़ोस बदलेगा फिर समाज भी बदलेगा। हर किसी को एक छोटी शुरुआत करने की जरुरत है, एक बड़ा और सकारात्मक परिवर्तन स्वतः हो जायेगा।

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