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माँ दुर्गा की आराधना

Indradhanush
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शारदीय नवरात्र में पूरी नियम-निष्ठा से नौ दिनों तक माँ दुर्गा की आराधना की जाती है| आश्विन माह के शुक्लपक्ष में नवरात्र के आयोजन का कारण यह है कि शुक्लपक्ष बढ़ते प्रकाश और ज्ञान का प्रतीक है| जिस तरह शुक्लपक्ष में चाँद का आकर और प्रकाश बढ़ता है वैसे ही ये समय हमें ये सन्देश देते हैं कि हम निरंतर अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, असत्य से सत्य की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर अग्रसर हों| अपनी आत्मशक्ति का , आत्मबल का विकास करें और अपनी कमजोरियों तथा कमियों पर विजय पायें जिससे जीवन को सकारात्मक दिशा मिलें| व्रत के नियम-निष्ठा हमें जीवन को संयमित रखने की शिक्षा देते हैं और मन में सात्विक भाव उत्पन्न कर हमारे मन को, आत्मा को पवित्र और निर्मल बनाते हैं| इस समय रामलीला, रामायण, भागवत पाठ और माँ के जागरण में भजन-कीर्तन के जगह-जगह आयोजन से पूरा वातावरण आध्यात्मिक हो जाता है जो हमें आध्यात्म की ओर प्रेरित करता है| चारों तरफ सकारात्मक उर्जा से सभी लोग स्वयं को उर्जान्वित महसूस करते हैं|
हमारे देश भारतवर्ष में जितने भी पर्व त्यौहार मनाये जाते हैं वो सिर्फ कर्मकांड पर आधारित नहीं होते बल्कि इनके पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी हैं | भारतीय संस्कृति में पर्व त्यौहार शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक शुद्धिकरण का सशक्त माध्यम है | आश्विन माह में ऋतु परिवर्तन होता है, आयुर्वेद में इस बात का उल्लेख है कि इस समय हमारी जीवनशैली संयमित होनी चाहिए जिससे तापमान में अचानक आने वाले परिवर्तन से हमारे शरीर पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े| नवरात्र में संयमित खान-पान से हमारे शरीर और मन दोनों का शुद्धिकरण होता है और ये नियम-संयम हमारे शरीर और मन को शक्ति एवं उर्जा प्रदान करते हैं| आश्विन शुक्लपक्ष के नौ दिन माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है|
दुर्गा माता की पूजा में लाल रंग के गुड़हल के फूल अर्पित करने से घर में उत्साह और नवीन उर्जा का संचार होता है, ऐसी मान्यता है| शक्ति की प्रतीक माँ दुर्गा लाल पुष्प को चढ़ाने से प्रसन्न होकर शक्ति प्रदान करती हैं| दुर्गा पूजन के लिए आवश्यक सामग्री हैं दुर्गाजी की मूर्ति, गंगाजल, रोली, कलावा, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, फल, फूल, अक्षत, कपूर, सिन्दूर, पंचमेवा इत्यादि| इसके साथ ही नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ अथवा श्रवण अवश्य करना चाहिए| ऐसा माना जाता है कि नवरात्र में माँ के गुणों का पाठ एवं गान नौ ग्रहों के बुरे प्रभाव को नष्ट करता है| घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है एवं सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है| सभी प्रकार के कल्याण के लिए- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके| शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणि नमोस्तु ते|| मंत्र का जाप करना चाहिए| इससे सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं| नवरात्र पूजन से जुड़ी एक महत्वपूर्ण परंपरा है कि २ से १० वर्ष की कन्याएं साक्षात माँ दुर्गा का स्वरुप मानी गई हैं| नौ कन्याओं के साथ ही एक लड़के के भी पूजन का विधान है, कन्या पूजन पूरी श्रद्धा शुद्ध आचार-विचार एवं व्यवहार से करना चाहिए| सबसे पहले कन्याओं के चरण धोने चाहिए उसके बाद उनके माथे पर रोली-अक्षत से टीका लगाकर फिर हाथ में कलावा बाँधना चाहिए| कन्याओं को चुनरी ओढ़ाकर हलवा, पूरी, चना एवं दक्षिणा देकर श्रद्धापूर्वक प्रणाम करना चाहिए| इनकी श्रद्धा-भक्ति से माँ दुर्गा अत्यंत प्रसन्न होती हैं|
नवरात्र के आयोजन का सन्देश यही है कि हम अपने अन्दर की बुराइयों पर विजय पायें, मन से नकारात्मक विचारों को नष्ट करें एवं अच्छाई, सत्य और सकारात्मक विचारों से जीवन को सफल और सार्थक बनाये| माँ के प्रति सच्ची श्रद्धा का अर्थ यही है कि उनकी असीम शक्ति को हम स्वयं के भीतर महसूस करें और उन्हें अपने अमूल्य जीवन के लिए पूरे मन से धन्यवाद दें|
-सुधा जयसवाल

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