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तू यहीं कहीं है मुझमें ही कहीं है

Indradhanush
Indradhanush
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असत्य पर सत्य की विजय हमें याद रहे इसलिए हर वर्ष हम बुराई रुपी रावण को जलाकर दशहरा मनाते हैं पर क्या हर वर्ष हम अपने भीतर झांक कर देखते हैं कि इस वर्ष अपनी किसी कमी या कमजोरी को दूर करेंगे। दृढ इच्छा शक्ति से हम अपने दोषों को दूर कर सकते हैं बस प्रयत्न्न करने की देर है। सत्मार्ग पर चल कर सद्गुणों का विकास ही ईश्वर की सही अर्थों में आराधना है।
कोई जोड़-घटाव नहीं कर पाई बस मन के भावों को शब्द दे दिए हैं। मेरी ये रचना कविता है भी या नहीं, पता नहीं। इसमें मेरे पापा-मम्मी, मेरी कलम की प्रेरणा, आदर्श और मार्गदर्शक ज्ञानी जी के विचार और कुछ मेरे विचार हैं।
ईश्वरीय शक्ति को मैंने जिस रूप में महसूस किया बस उसी को शब्द दिए हैं।

जब हताशा ने चारों ओर से घेरा
जीने की कोई राह नजर न आई
जिस सीरत में दिखी जीने की सूरत
उस सूरत में है तू।

झूठ की रंगीनियों ने
सूरज सा चमकाना चाहा
पर हम सच की राहों पर
दीया बनकर ही रौशन रहे
उस सच की रौशनी में है तू।

ठुकराने वाले को भी ठोकरों से बचाया
तोड़ने वाले को भी टूटने से बचाया
वो प्रेम जो सबके लिए महसूस किया
उस प्रेम में है तू।

लाख गमे-दौर आये तो क्या
अपने गम से नम न हुई आँखें
औरों के गम में छलक आये जो आंसू
उस आंसू में है तू।

मेरी खामियां बताने वाले को
अपने दिल के करीब रखा
उनकी बदौलत जो बदलाव मुझमें आया
उस बदलाव में है तू।

किसी की जीत के लिए
जब हम ख़ुशी-ख़ुशी हार गए
उस हार में जो जीत मिली
उस जीत में है तू।

जिस संगीत की स्वर-लहरी में
में हम खो जाएँ, वो धुन जो
दिल के तारों को छेड़ जाए
उस संगीत में है तू।

मासूम बच्चों की निश्छल हंसी
हर शय से खूबसूरत लगती है
उस मुसकान को देखके
मेरे होठों पर आये जो मुसकान
उस मुसकान में है तू।

जब भी किसी ने पूछा
तू क्या है? तेरा अस्तित्व क्या है?
अपने शून्य से अस्तित्व से भी किया प्यार क्योंकि
उस शून्य के साथ इकाई में है तू।

जैसे-जैसे तुझको पहचाना
खुद को पहचानते गए
खुद को पहचान कर जो पहचान मिली
उस पहचान में है तू।

मैं क्यूँ ढूंढू तुझे यहाँ-वहाँ, इधर-उधर
तू यहीं कहीं है मुझमें ही कहीं है
मेरे मन के हर खूबसूरत ज़ज्बात में है तू
मेरे हर अहसास में है तू।
– सुधा जयसवाल

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