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पेशावर में स्कूली बच्चों पर तालिबानी हमलावरों के शिकार मासूमों के लिए क्या वाकई पाकिस्तान को कोई अफ़सोस या दुःख है? क्या इस हादसे के बाद पाकिस्तान की आँखे बदसूरत खौफनाक ख्वाब (आतंकवाद) को बेकसूरों के खून से खूबसूरत ख्वाब (इस्लाम धर्म का साम्राज्य) बनाने का ख्वाब देखना बंद कर देगी, शायद नहीं।
एक बदसूरत खौफनाक ख्वाब पकिस्तान ने हमेशा से देखा कि पूरी दुनियाँ में इस्लाम धर्म का साम्राज्य हो। आतंकवाद को अपने मजहब से जोड़ कर अपने धर्म और सभी धर्मों की भावनाओं को लहूलुहान किया। नफरत और दुर्भावना की जड़ें मजबूत करते रहे औरों के लिए, खुदगर्ज बनकर दुनियाँ की सबसे बड़ी ताकत बनने का ख्वाब देखने वाले, क्या जवाब है उन दो जोड़ी आँखों के लिए, जिनके लिए उन्होंने सुनहरे खवाब देखे उनके ख्वाबों को अब कौन पूरा करेगा? रंज और कोई मलाल तुम्हें नहीं है उन मासूमों, बेकसूरों की मौत का अगर होता तो आतंकवाद को मिटाने की कसम खाते और दे सकते थे श्रद्धांजलि उन मासूमों को।
वितृष्णा होती है तुम्हारे अफ़सोस जताने के लिए कहे झूठे शब्दों से, क्या स्कूलों में सुरक्षा बढ़ा देना तुम्हारे पाले हुए समस्या का समाधान है? स्कूलों में सुरक्षा के नाम पर बस इक गार्ड होता है वो मुकाबला कर पायेगा उग्रवाद का? कितने जगह और कहाँ-कहाँ सुरक्षा बढाओगे? जरुरत है ख़ुफ़िया तंत्र को मजबूत करने की। अरे! अपनी नापाक सोंच को बदलो और समझो कि जिस आग में औरों को जलाकर आँखें सेंकना चाहते हो उसमे तुम्हारा अपना भी घर जल रहा है और आगे भी जलेगा अगर ऑंखें अपनी अब भी ना खोली तो।
सच्ची श्रद्धांजलि देनी है उन मासूमों को तो आओ सब मिल कर कसम उठायें उग्रवाद को जड़ से मिटाने की, आन्दोलन करें सब मिलकर लायें सही सकारात्मक सोंच की आंधी और जड़ से उखाड़ फेंकें बैर, नफ़रत के पेड़ को जो सिर्फ जहरीले फल देते हैं। क्या तेरा, क्या मेरा, अमन चैन ही सबसे बड़ा मजहब होता है।
भावभीनी श्रद्धांजली सभी मासूमों को और ईश्वर से प्रार्थना है कि उनके परिवारों को इस दुःख दर्द को सहने की हिम्मत दें और जिस आतंकवाद ने उनके बच्चों का खून किया उनके खिलाफ खड़े होने की शक्ति दें।
अपने नापाक
इरादों की खातिर
ले लिए तुमने
कितने ही मासूमों की जान
बुझा दिए
कितने ही घरों के चिराग
गर वाकई है तुम्हें
रंज और मलाल
घरों में अँधेरा करने का
तो जाया न होने दो
मासूमों का लहू
अब तो जला दो
एक चिराग
चैन और अमन का
– सुधा जयसवाल
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