Indradhanush
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लोग पत्थर के हैं यहाँ और,
रिश्ता शीशे सा जोड़ते हैं|
फूलों की तमन्ना में दामन में,
सिर्फ काँटे हीं आते हैं|
लाखों सितारों से रौशन है ये जहां मगर,
शमा की आँखों से तो अश्क ही लरजते हैं|
खुशियों में थी जिनकी इनायते-नजर हम पर,
गमे-दौर में वही नजरें फेर लेते हैं|
जिनके लिए रखी हमेशा अपनी आँखों में पानी हमने,
उन्हीं की आँखों में हमारे लिए पानी नहीं है|
जिस जुबां से झड़ते थे फूल,
वो जहर बुझे नश्तर चुभोने लगे हैं|
छोड़ दिया अपने जख्मों को वक़्त के भरोसे,
मगर वो तो भरने के बजाय नासूर बन गए हैं|
कोई भी नहीं ऐसा जो दूर तलक साथ दे,
लोग सारे खुदगर्ज हो गए हैं|
रिश्ते-नाते, दोस्ती, वफ़ा की बातें,
तो बस किस्से-कहानियों के हिस्से रह गए हैं|
लोग पत्थर के हैं यहां और,
रिश्ता शीशे सा जोड़ते हैं|
– सुधा जयसवाल
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