Menu
blogid : 11793 postid : 904515

शीशे सा रिश्ता

Indradhanush
Indradhanush
  • 52 Posts
  • 173 Comments

लोग पत्थर के हैं यहाँ और,

रिश्ता शीशे सा जोड़ते हैं|

फूलों की तमन्ना में दामन में,

सिर्फ काँटे हीं आते हैं|

लाखों सितारों से रौशन है ये जहां मगर,

शमा की आँखों से तो अश्क ही लरजते हैं|

खुशियों में थी जिनकी इनायते-नजर हम पर,

गमे-दौर में वही नजरें फेर लेते हैं|

जिनके लिए रखी हमेशा अपनी आँखों में पानी हमने,

उन्हीं की आँखों में हमारे लिए पानी नहीं है|

जिस जुबां से झड़ते थे फूल,

वो जहर बुझे नश्तर चुभोने लगे हैं|

छोड़ दिया अपने जख्मों को वक़्त के भरोसे,

मगर वो तो भरने के बजाय नासूर बन गए हैं|

कोई भी नहीं ऐसा जो दूर तलक साथ दे,

लोग सारे खुदगर्ज हो गए हैं|

रिश्ते-नाते, दोस्ती, वफ़ा की बातें,

तो बस किस्से-कहानियों के हिस्से रह गए हैं|

लोग पत्थर के हैं यहां और,

रिश्ता शीशे सा जोड़ते हैं|

– सुधा जयसवाल

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply