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बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति

Indradhanush
Indradhanush
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भौतिक सुख-सुविधाओं की अंधी दौड़ ने लोगों की सोंच को बहुत प्रभावित किया है। आज एक सफल इंसान की पहचान उसकी सच्चरित्रता से नहीं बल्कि आर्थिक रूप से संपन्न होने और भौतिक सुख के साधनों से होने लगी है। इसी वजह से हर माता-पिता छोटी उम्र से ही बच्चों के मन में ये बात डालने लगे हैं कि उन्हें सफल होना है और वो बच्चों को आत्मनिर्भरता का मतलब आर्थिक रूप से संपन्न होना समझाते हैं। बड़े आदमी बनने का मतलब डॉक्टर, इंजिनियर, बड़ा बिजनेस मैन होना है। आज बच्चे भारी बस्ते और माता-पिता की ऊँची आकांक्षाओं की अपेक्षा के दबाव में जी रहे हैं। यही वजह है कि बच्चों में छोटी उम्र में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढती जा रही है।
हमारे एक परिचित की बच्ची ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसका साइंस का पेपर अच्छा नहीं हुआ और इस डर से कि वो फेल हो जाएगी, उसने आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठा लिया। अब उनके माता-पिता के हाथ असहनीय दर्द और पछतावा है। काश! वो अपनी बच्ची को सही गाइडलाइन दे पाते।
माता-पिता को बच्चों को स्वावलंबन का अर्थ समझाना चाहिए। स्व का अर्थ होता है ‘आत्म’ और अवलंबन का अर्थ है ‘सहारा’ यानि आत्म का सहारा लेना। अपने मन की अनंत शक्ति में विश्वास करना ही स्वावलंबन है। मन की असीम शक्ति ही सफल बनाती है। जो मन से मजबूत हो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं। बच्चों के मन पर ये दबाव क्यूँ देना कि उन्हें एक बार में ही सफल होना है। हर बच्चे में गुण और रूचि अलग-अलग होते हैं जरुरत होती है उन्हें समझ कर सही राह दिखाने की। उन्हें उनकी क्षमता और शक्ति पर विश्वास दिलाने की। कई बार लगातार पराजित होकर राजा ब्रूस जब एक गुफा में विश्राम कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक मकड़ी दीवार पर चढ़ती है, गिर पड़ती है, फिर चढ़ती है, फिर गिर पड़ती है। मकड़ी बार-बार चढ़ती-गिरती रही और अंत में जब पूरी शक्ति से जोर लगाया, तो मकड़ी छत पर पहुँच गई। राजा ब्रूस को मकड़ी की इस सफलता से स्वावलंबन और आत्मविश्वास की सीख मिली। उन्होंने पूरी शक्ति, साहस और विश्वास से शत्रु पर आक्रमण किया और विजयी हुए। अपने बच्चों को एक ही बार में सफल होने की बजाय उन्हें असफलता को स्वीकार कर फिर प्रयास कर सफल होने का यानि स्वावलंबन का गुरुमंत्र दें। भौतिकता के हावी होने का बुरा प्रभाव हमारी आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों पर पड़ा है। आज इंसान रिश्तों और इंसानियत से ज्यादा धन की चिंता करने लगा है। अपने बच्चों को सफल इंसान बनाने से पहले एक अच्छा इन्सान बनाने की सोंचना होगा। नैतिकता व्यवहारिक ज्ञान विकसित करने के लिए घर-परिवार,रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ अच्छे सम्बन्ध ही आधार होते हैं। हमारे द्वारा किया गया अच्छा और सकारात्मक व्यवहार ही बच्चों में सकारात्मक गुण विकसित कर सकते हैं और उन्हें एक सुरक्षित माहौल दे सकते हैं। बच्चों से पहले हमें अपनी सोंच और व्यवहार को सही और संतुलित रखना होगा। बच्चों को समय, प्यार, विश्वास और भावनात्मक सुरक्षा दें। हमारे बच्चों का जीवन अनमोल है, ये परिवार, समाज और देश की नींव हैं। हमें इन्हें अपनी गलत सोंच और गलत आकांक्षाओं की भेंट चढ़ने से बचाना होगा।
– सुधा जयसवाल

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