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बच्चों की सुरक्षा और हमारी जिम्मेदारी

Indradhanush
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जिन बच्चों को अभी ऊँगली थाम कर चलना ही सिखाया है वो यौन शोषण और बलात्कार जैसी दुर्घटनाओं का शिकार बन जाएँ ये बात दिल को दहलाने वाली है। आये दिन ख़बर मिलती है कि यौन शोषण और बलात्कार से अबोध या तो काल के गाल में समा जाते हैं या बच जाए तो भी बदरंग जिन्दगी का दाग ढोने को लाचार। 5 वर्ष से ज्यादा के बच्चों को कुछ हद तक और किशोरों को काफी हद तक यौन शोषण और बलात्कार के बारे में सतर्कता बरतने और बचाव की जानकारी अभिभावक दे सकते हैं मगर 5 वर्ष से कम उम्र के अबोधों को क्या और कैसे समझाया जाए ये बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। इस नादान उम्र में बच्चे ये अंतर जान पाने में सक्षम नहीं हो सकते कि उसे प्यार से देखा जा रहा है या शिकार की नजर से, छोटे बच्चों से प्यार की आड़ में उनका यौन शोषण की दुर्घटनाएँ बढती ही जा रही है। आखिर किस तरह उन्हें रॉंग टच के बारे में समझाया जाए। सेफ टच और अनसेफ टच के बारे में क्या 5 वर्ष तक के बच्चों को बता पाना, समझा पाना संभव है? 2007 में कराई गई चाइल्ड एब्यूज स्टडी के अनुसार 53 फीसदी से ज्यादा बच्चे इसका शिकार हैं और 50 फीसदी बच्चों के जान पहचान के लोग और रिश्तेदार होते हैं।
प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज 2012 एक्ट की जानकारी आज भी सभी लोगों को नहीं है, इसके बारे में हर अभिभावक जानकर बच्चों की देखरेख और सुरक्षा के प्रति जागरूक होंगे। वो अपनी भूमिका को अच्छी तरह समझ पाएंगे। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बच्चे का स्पर्श द्वारा यहाँ तक कि दृष्टि, बातों द्वारा यौन शोषण, बच्चों की नग्न तस्वीरें या विडियो लेने पर 3-5 साल की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा यौनिक उद्देश्य से किया गया हमला या ऐसे ही यौनिक अपराध के लिए सात साल तक की सजा हो सकती है।
शिकार हुए बच्चों की सुरक्षा और मानसिक देखरेख की जिम्मेदारी के लिए जेजे एक्ट बनाया गया इसके तहत शिकार हुए बच्चों और अभिभावकों को पूरी सुरक्षा और समर्थन मिलता है। बच्चे के रिहैबिलिटेशन की व्यवस्था की जाती है। हर जिले में एक चाइल्ड वेलफेयर कमेटी भी है, जिसमें बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर कोई भी अपनी अर्जी कर सकता है। उनकी चाइल्ड हेल्प लाइन नंबर 1098 पर कहीं से भी और कभी भी इस विषय पर बात की जा सकती है।
मेरी दोस्त पटना हाई कोर्ट की वकील दीपा साह की दी हुई जानकारी के अनुसार बाल यौन शोषण से निपटने के लिए कानून ने भारतीय दंड संहिता 1860, महिलाओं के खिलाफ होने वाले बहुत प्रकार के यौन अपराधों से निपटने के लिए प्रावधान (जैसे धारा 376, 354 आदि) प्रदान करती है और महिला या पुरुष दोनों के खिलाफ किसी भी प्रकार के अप्राकृतिक यौन संबंधों के लिए धारा 377 प्रदान करती है, लेकिन दोनों ही लिंगों के बच्चों (लड़का/लड़की) के साथ होने वाले किसी प्रकार के यौन शोषण या उत्पीड़न के लिए कोई विशेष वैधानिक प्रावधान नहीं है। इस कारण, वर्ष 2012 में संसद ने यौन (लैंगिक) अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम 2012 इस सामाजिक बुराई से दोनों लिंगों के बच्चों की रक्षा करने और अपराधियों को दण्डित करने के लिए एक विशेष अधिनियम बनाया। इस अधिनियम से पहले, गोवा बाल अधिनियम में बच्चों के खिलाफ बेशर्मी या छेड़छाड़ के कृत्यों का अपराधीकरण किया गया।
कानून सुरक्षा और अपराधियों को दंड दुर्घटना घट जाने के बाद देता है, वो भी अपराध को रोकने में लगभग नाकाम ही है। किसी बच्चे की जिन्दगी उसकी शारीरिक और मानसिक सेहत ख़राब कर देने के लिए कानून ने दंड कठोर नहीं रखे। देखा जाये तो हत्या से भी जघन्य अपराध है बाल यौन शोषण और बच्चों से बलात्कार इसलिए जरुरत है कि कानून इसके लिए इतना कठोर दंड दे कि लोगों में कानून का डर हो और ऐसे कृत्य करने की जुर्रत न करे।
बच्चों के लिए सुरक्षा घेरा अभिभावक खुद तैयार कर सकते हैं। 3 साल तक के बच्चों को अकेला बिलकुल न छोड़ें। 3-5 साल के बच्चों को भी अपने साथ या परिवार के विश्वसनीय सदस्यों के साथ ही रखें। सुरक्षा देने के लिए बच्चों को घर में कैद करके उनकी आजादी नहीं छीन सकते, उन्हें घर से बाहर भी खेलने दें मगर उन्हें अपनी नजरों के सुरक्षा घेरे में जरुर रखें। उनके व्यवहार और बातों पर ध्यान दें। स्पर्श और संवेदना छोटे बच्चे भी महसूस करते हैं, अगर हँसते-खेलते बच्चों में डर और गुमसुम रहने के लक्षण दिखें तो उसके चाइल्ड एब्यूज होने की सम्भावना हो सकती है। जब बच्चे छोटे हों तो घर पर आने जाने वाले परिचितों और रिश्तेदारों पर भी नजर रखें, किसी पर भी आँखें बंद करके भरोसा न करें। घर पर आने जाने वाले लोग गलत न हों, नशा करने वाले न हो चाहे वो आपके कितने भी करीबी रिश्तेदार हों, उनसे भी उचित दूरी रखें। संयुक्त परिवार में हैं तो भी बच्चों पर माता-पिता विशेष ध्यान दें। एकल परिवार में रहना मजबूरी है और पति-पत्नी दोनों जॉब कर रहें हों तो जब तक बच्चे छोटे हैं दादा-दादी या नाना-नानी या किसी विश्वसनीय रिश्तेदार को साथ रखें, आया के भरोसे बच्चों को न छोड़ें। ये हर अभिभावक को ध्यान में रखना चाहिए कि बच्चे सही गलत का फर्क नहीं जान सकते हैं पर आप समझ सकते हैं इसलिए सतर्क रहें और बच्चों की सुरक्षा का ध्यान पहले खुद रखें। सरकार को जॉब करने वाली महिलाओं के लिए कार्यालय में बच्चों की देखभाल के लिए क्रेच की सुविधा देनी चाहिए, जहाँ 3 साल तक के बच्चे उनकी नजर में रहें।
कई अभिभावक बच्चों को स्कूल में डालकर निश्चिन्त हो जाते हैं, बच्चा स्कूल में किस हाल में है ये जानने की उन्हें फुरसत नहीं मिलती, ऐसा बिलकुल न करें, स्कूल और टीचर्स के संपर्क में रहें। हर दिन के बारे में बच्चों से बातें करें, उनके दोस्तों और उनके माता-पिता से भी संपर्क में रहें, जिससे आपको पता रहेगा कि बच्चा स्कूल में सुरक्षित है या नहीं। (मैंने कहीं पढ़ा था वो उपाय कारगर साबित हो सकता है।) सेफ्टी के लिए माता-पिता अपने बच्चों को कोई पासवर्ड सिखाएं अगर किसी कारण बच्चों को स्कूल से लाने के लिए अपनी जगह किसी और को भेजना पड़े तो बच्चा पासवर्ड पूछने के बाद ही उस इंसान के साथ जाये, इससे कोई अपरिचित व्यक्ति या किसी के गलत हाथों में पड़ने से बचेगा।
हर स्कूल में बच्चों को बाल यौन शोषण के खिलाफ जागरूक करने के लिए भी शिक्षा दी जाए।
बच्चों को सेक्सुअल बिहेवियर के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। 5 वर्ष से ज्यादा के बच्चों को उनके शरीर की गरिमा के बारे में जागरूक करें। उन्हें बताएं कि कोई भी अपरिचित स्पर्श जो उनके चेहरे और हाथों के अलावा जिनसे वह पहले से परिचित नहीं है अनसेफ टच है। उन्हें प्राइवेट पार्ट्स के बारे में समझाएं, उन पर कैसा भी स्पर्श अनसेफ टच है, अगर कोई ऐसा करे तो वो तुरंत भाग जाएँ और आपको बताएं। बच्चे अगर अपनी उम्र के हिसाब से ऐसी बातें करें जो उन्हें नहीं करनी चाहिए तो उस पर ध्यान देकर कारण का पता लगायें। ज्यादा जिद करना, गुस्सा करना, किसी से बचने की कोशिश या किसी का सम्मान न करना क्योंकि हो सकता है कि इन बातों के पीछे बाल यौन शोषण हो, उनके साथ कुछ गलत हो रहा हो। हमेशा अपने बच्चे की शिकायत पर ध्यान दें, उन्हें विश्वास में लें, उनकी बात का विश्वास करें। उनकी बात को सही मान कर तुरंत कदम उठायें ताकि कुछ गलत होने से पहले ही उन्हें सुरक्षित किया जा सके और उनके मानसिक सेहत पर बुरा प्रभाव न पड़े। बच्चा आश्वस्त हो कि उन्हें गलत नहीं समझा जा रहा और उनका कोई दोष नहीं। दुर्भाग्य से कोई अनहोनी हो भी जाए तो भी बच्चों को यही विश्वास दिलाएं कि उनका कोई दोष नहीं और आरोपी के खिलाफ तुरंत कार्यवाही करें और उन्हें सजा दिलाएं।
हमें ये अच्छी तरह याद रहे कि अभिभावक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि इस सामाजिक विकृति को मिटायें। आस-पास के लोगों को भी जागरूक करें, ताकि हमारे बच्चों को स्वस्थ माहौल मिले और उनमें स्वस्थ मानसिकता का विकास हो। अपने बच्चों को अपना पूरा विश्वास, प्यार, समय और भावनात्मक सुरक्षा दें। आज अगर हम उनकी सुरक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठाएंगे उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से नहीं निभाएंगे तो कल वो हमारी जिम्मेदारी उठाने के लिए जिम्मेदार नागरिक नहीं बन सकेंगे।
– सुधा जयसवाल

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